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***फ्रेंडशिप डे स्पेशल-वो गुलाब का पेड़ ***

hamari soch
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HIBISCUS

मेरे प्रिय आकाश भैया,राखी दीदी (जिनकी प्रेरणा से मै आज ब्लॉग लेखन में हूँ ) , निशा दीदी ,रौशनी दीदी ,राजकमल अंकल ,बाजपाई अंकल ,राजकमल अंकल ,कौसिक जी ,अबोध बालक जी और जिन मित्रो का मैंने नाम नहीं लिया वो भी मेरे अंतर्मन में है सबसे पहले आप सभी को प्रणाम और इस बिश्वाबन्धुत्वा दिवस पर हार्दिक शुभकामनाये आपलोगों का साथ और सलाह मेरी हमेशा मार्गदर्शन करती रहेगी आपलोग चाहे मुझसे बड़े हो या छोटे पर मेरे मित्र ही है मेरे मम्मी और पापा मेरे सबसे अच्छे दोस्त है जिनसे मै हर चीज सिएर करता हूँ दोस्ती उम्र के बन्धनों से मुक्त रहती है साथ ही साथ आपलोगों जैसे महान और प्रबुद्ध लोगो से मेरी पहचान जिस जागरण मंच के मध्याम से हुई उस जागरण टीम को मेरा प्यार भरा अभिवादन हम जानते है की दोस्ती दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत रिश्ता है यह जाती धर्म ,उंच-नीच ,अमीरी -गरीबी के बंधन से परे है इसके लिए तो केवल दिल और भाब्नाओ का मिलना जरुरी है सायद येही वजह है की इन्सान और जानवर ही क्या पौधों तक से भी मित्रता हो जाती है ऐसे ही मेरा बंधन या यु कहिये मेरा पहला प्रेम एक गुलाब के पौधे से हुआ इस पौधे की एक डाली मुझे स्कूल से आने के समय मिला मैंने उसे लगा दिया फिर न जाने कब वो बड़ी हो गयी पता ही नहीं चला लेकिन उससे मेरी बभ्नात्मक रिश्ता दिन-ब-दिन बढ़ता ही चला गया और ये रिश्ता इतना मजबूत हो चूका था की हम दोनों अपने अंतर्मन की भाषा को सायद टेलीपेथी के जरिये ही समझने लगे थे मेरी हर ख़ुशी और गम मैंने उसी के साथ बाँट ता था चाहे परीक्षा देने जाना या फिर रिसुल्ट निकलने पर उसे टोफ्फी खिलाना वो तो नहीं खा पाती थी पर ढेर साड़ी चीटिया जो सायद इसी वजह से उसकी जड़ो के पास अपनी कालोनी बनाई थी उनकी दावत हो जाती थी वो मेरे लिए तरु नहीं एक कल्प तरु बन गयी थी सुबह उठकर जब मै उसे प्रणाम करता था तो वो झूमती थी मानो मेरी हर चीज को वो मन की आँखों से देखती हो इसी तरह् हमारा ये रिश्ता प्रगाढ़ होता ही चला गया, दिन बीतते गए फिर मेरे घर के लोगो ने शिक्षा के लिए मुझे रांची भेजना चाहा जिस दिन मुझे जाना था उस दिन सायद सबसे ज्यादा दुखी मै और मेरा वो गुलाब का पौधा ही था, रात में यात्रा पर निकलने से पहले मै उसके के पास बैठ कर बहुत रोया वो भी उस दिन बहुत गंभीर थी मानो वो भी मेरी तरह रो रही हो फिर उससे मै दूर चला गया एक दो बार जब मै घर आता था हम मिलते थे रोते थे मै उसे अपनी शिक्षा के बारे में बताता था पर अब उसमे वो रौनक नहीं थी सायद ये बिछड़ने का गम था मै रांची में था बरसात का मौषम था और सायद मेरे जीवन की एक काली रात भी जिस दिन थोड़े से हवा के झोके से मेरी प्राणप्रिय वो पेड़ सदा के लिए इस दुनिया को अलबिदा कह गयी मुझे उस रात एक भयंकर सपना आया और सुबह न तो कुछ खाने का और न ही पढाई में मन लग रहा था क्लास में भी उस दिन मन नहीं लगा मेरे सारे क्लास्स्मेट मुझसे कहने लगे जो सबको हंसाता है आज वो आज खुद ही उदास क्यों है “पता नहीं यार पर कुछ तो गड़बड़ है “मैंने कहा मेरी मम्मी को बार बार फोन करने पर भी ये मालूम न चला पर, पता तो आखिर चल ही गया पर 3 दिन बाद वो मुझे छोड़ कर चली गयी थी अब केवल आँखों में आंसू और दिल में उसका अहसास था वो जहा पे थी उस जगह पर मैंने कई फूल के पौधे लगाये पर वो नहीं लगे BUT उस जगह पर आज एक सफ़ेद हिबिस्कुस का फूल है सायद श्रद्धांजलि के फूल सफ़ेद ही होते है सायद आपलोगों को ये पढ़कर लगे की मै पागल हूँ पर एक सच्चा मित्र अपने दोस्त के बियोग में पागल हो ही जाता है और प्रेम वो तो किसी से भी हो सकता है यहाँ मै आकाश भैया का एक लाइन लिखना चाहूँगा “जब गधी से हो प्यार तो परि क्या चीज है” आज अपलोगो से मेरी ये बात ही उस नाजुक से पौधे के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी मैंने कही कोई गलत बात कह दिया हो तो माफ़ कीजियेगा ख़याल रखियेगा धन्यवाद , आपलोगों का बिनीत

सुप्रिय

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