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महात्मा बुद्ध जिनको की हमलोग ज्ञान का दूसरा रूप मानते है और हमे ये भी मालूम है जो उनके अष्टांग सिद्दांतो पर चलता है वो संसार के ऐसे कुनियमो और कुप्रथाओ से मुक्त हो जाता है लेकिन मालूम गौतम बुद्ध को असली ज्ञान किसने दिया था वो असली ज्ञान उन्हें पीपल के छाँव में पूर्णिमा की सुन्दर चन्द्र प्रभा में भी नहीं मिल पाया था वो ज्ञान उन्हें यशोधरा से मिला था ,अभी जागरण में नारियो के सम्बन्ध में ही बहुत से ब्लॉग आ रहे है जो महान लेखको द्वारा लिखी जा रही है उन्ही के पदचिन्हों पर चलकर मैंने ये रचना लिखी है और मेरी ये रचनापुष्प उन्ही के चरणों में समर्पित है
गौतम बुद्ध कहते है की “मुझ पर भरोसा मत करना मई तुमलोगों को जो कुछ भी बताता हूँ उसपर इसलिए बिस्वास मत करना की तुम मेरा सम्मान करते हो मन की तुम मुझे उच्चासीन
रखते हो तो क्या बस येही वजह है की तुम मेरी हर बात को आत्मसात कर लो (हम बस्ताबिक जीवन में य गलती करते है )सोचना बिचारना और तुम्हारे अनुभव की कसौटी पर जो सही लगे वही बास्तव में सही है ”
हम अक्शर अपने से बड़े ,हमारे शिक्षक या हमारे धर्मग्रथो की वेसी बातों को भी आत्मसात कर लेते है जिन्हें हमें वास्तव में ठीक नहीं लगता क्योकि हमें लगता है हमे पाप लगेगा
परन्तु पाप और पुण्य की परिभाषा क्या है .यह तो आपने मन की परिसीमा है अगर मन कहता है ये काम अच्छा है तो पुण्य और मन कहे तो पाप
मंदिरों में बलि दिया जाता है मेरे ख्याल में इससे बड़ा पाप और क्या हो सकता है क्युकी उसी देवी के संतान की बलि उन्ही के मंदिर में दिया जाता है (बकरी भी तो इस्वर के ही संतान है) परन्तु बलि देने वाला तो येही शोचता है ना की उसने तो माता को खुश कर दिया और बड़े ही धर्म और पुन्य का काम किया
आतंकवादी जिनका मानना है की वो जो आतंक फैलाते है वो जेहाद है और ये धर्म की रक्षा के लिए है परन्तु क्या नरसंहार से घृणित और पाप पूर्ण कार्य और क्या है परतु उन आतंकवादियों को इसमें धर्म और पुन्य नजर आता है
गौतम बुद्ध आगे कहते है मेरे कई बिक्षुक शिष्य मेरे अष्टांग सिधान्तो को शिलालेख और पत्लेखन के रूप में दिवालो में चिपका ते है उन्हें सुबह शाम पड़ने के लिए उनका मानना है की इसे बस पढने या देखने मात्र से ही ज्ञान मिल जय्र्गी और पुन्य भी प्राप होगा “अक्सर हमलोग वास्ताबिक जीवन में ऐसा ही करते है हम धर्मग्रंथो को पढ़ते है भजन कीर्तन सुनते है (बंगाल में बैसाख माह में हर गावो में कीर्तन होते देखा जा सकता है )क्या हम लोग उस भजन या ज्ञानवानी के १% का भी अमल करते है ?
भजनों या कीर्तन वगैरह में हम राधा कृष्ण मीरा के अबिरल और निश्छल प्रेम को सुनते है
और करते क्या है और करते क्या है ऐसे ही दो प्रेम करने वाली आत्माओ को अलग या दरार डालने की कोशिस मेरे ख्याल से ये पुन्य का काम तो नहीं है
आगे गौतम बुद्ध कहते है की मेरी सत्य के ज्ञान का प्रचार कहा धूमिल होती जा रही है मैंने इसलिये तो ज्ञान का प्रचार नहीं कर रहा हूँ नगर सेठ मेरे मंदिर बनवा रहे है मुझे बाग़ और मठ दान दे रहे है लोगो का सामने अपने को मेरा महान भक्त साबित करने के लिए ”
आज भी क्या ये बदला है आज भी हमारे समाज में उसे ही सबसे बड़ा धर्मात्मा मन जाता है जिसने जितना बड़ा मंदीर बनाया है या जो जितना मंदिरो में चढ़ावा चढ़ाता है
लेकिन मेरे समझ में असली संत तो सांसारिक जीवन बिताने वाले लोग ही है जो दुनिया को चलाते है और उनका पेट भी भरते है अगर ये सांसारिक लोग दुनिया में न होते तो खुद को संत कहने वाले लोगो को दान कहाँ से मिलता
गौतम बुद्ध अपने ज्ञान प्राप्ति के बाद भी उनके मान में कुछ भाव ऐसे आ रहे थे जो ज्ञान की पूर्णता के मार्ग को अवरुद्ध कर रहे थे
गौतम बुद्ध कहते है “मैंने अपनी ज्ञान प्राप्ति के उदेश्य से ही अपनी जीवन संगीनी यासोधरा और कोमल अंग संतान राहुल का परित्याग किया क्या मैंने ये अच्छा किया ”
इसके बाद बुद्ध को असली ज्ञान प्राप्ति यासोधरा से ही मिलती है और वही उनके पूर्ण ज्ञान की दिग्दर्शिका बनती है जब बुद्ध कपिलाबस्तु लौटे तो उस समयं अपनी प्राणप्रिय यासोधरा का सामना नहीं कर सकें क्युकी उन्होंने तो उपने कर्तव्यों से पहले ही अपने को मुक्त कर लिया था
जब यासोधरा से उनका साक्षात् हुआ तो यासोधरा ने केवल इतना ही कहा “क्या ज्ञान जंगल में ही मिलता है महलों में रहकर ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती “यह सुनकर बुद्ध निरुत्तर हो गए आज मनो बुद्ध की बोधिकता समाप्त हो गयी आज बुद्ध को जो ज्ञान की प्राप्ति हुई है वो पूर्ब के ज्ञान से कही बढकर थी आज जो ब्रम्भ तेज यासोधरा के मुख मंडल से आभा किरण सी दिख रही थी उसका सामना बुद्ध नहीं कर सकें और उन्होंने मात्र इतना ही कहा “भिक्षाम देहि देवी ” येसोधरा ने उन्हें भिक्षा स्वरूम अपना सबसे बड़ा धन पुत्र राहुल का अर्पण किया पहल ने बहुत जल्द ही तपस्या से सत्य की प्राप्ति कर ली और पुनः कपिलबस्तु लौट ए और अपने ज्ञान का उपयोग जन मानस प्रजा की भलाई में लगा दिया
सत्य ही संसार में त्याग की देवी सदा से ही नारी ही रही है क्या यासोधरा का पति बियोग में जो दिन और रात उन्होंने काटी थी वो क्या बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति से कम था ?
रामायण में सीता जी तो बनबास के समय श्री रामजी के साथ थी परन्तु उर्मिला जी जो की लक्षमण के बियोग में जो कस्ट सहा वो क्या रामजी के बनवास से कम था? श्री बाल्मीकि जी जिन्हों ने क्रोंच पक्षी के बध से (मा: क्रोंच : हतवान) पुरे महाकाव्य की रचना कर डाली उसके लिए मा उर्मिला के लिए नहीं कुछ बुँदे स्याही की कलम से निकली और नहीं आँखों से दो बूंद अश्रुधारा पर हम तो रामायण में कभी कुछ कमी दिखा ही नहीं न! क्यों ये हमारा धर्म ग्रथ है इसलिए न
हां बुद्ध के दर्शन से इतना तो हुआ है इसमें अपना पराया उंच नीच और जाती के भेद को मिटाना सिखाया है और आज हमें इसकी सख्त जरुरत है तभी हम एक स्वस्थ समाज और उज्जवल भबिस्य का निर्माण कर पाएंगे
क्युकी ” HEART relations IS SO SWEET AND BEAUTIFULL THEN BLOOD relations BECOUSE THERE IS NO LOGIC IN HEART relations ALWAYS MAGIC IN this relations “अगर आज हम अपने आत्मा के दीप को प्रज्वलित नहीं करेंगे तो हमारी आनेवाली पीढ़ी को हम घ्रीना ,बिध्वेस,हिंसा ,जाती वाद ही देंगे ताकि वो उसी आग में गिंदगी भर जलता रहे
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