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***अब नहीं चहकती गोरैया आँगन में ***

hamari soch
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कल शाम करीब ४ बजे मै बाइक से फॉर्म जमा करने जा रहा था इसी समय कुछ गोरैय्या की झुण्ड सड़क में कुछ चुन रही थी शायद दाने होंगे अचानक मेरे बाइक के पहिये के पास आ गयी मै वैसे तो बाइक धीरे ही चलाता हूँ परन्तु उन्हें बचाने के कारन मै गिर गया अगल बगल में कुछलोग थे जो मेरे इस हरकत पर हँसने लगे और क्यों न हँसे मैंने शायद हरकत ही कुछ ऐसी की थी पर क्या करूँ जिसे मै बचपन से प्यार करता हूँ और जिससे मेरी बचपन की ढेर सारी यादें जुडी हुई है उसके प्रति मै लापरवाह क्या हो सकता हूँ नहीं ना प्रस्तुत है एक कविता उनके नाम

अब नहीं चहकती गोरेया आँगन में …
अब नहीं उडती गोर्रेय्या आसमान में …
हे! मानव तुने क्या किया अपनी थोड़े से लाभ के लिए
प्रकृति माँ के अनमोल संतानों को ही संकट में डाल दिया
जन्म लेतीं नहीं अब गोर्रेय्या
बिलुप्त हो रही हमारी गोर्रेय्या
मोबाइल नेटवर्क और तरंगों ने ले ली इनकी बली

अब नहीं दिखती गोर्रेय्या आँगन में
याद है आज भी वो बचपन के दिन
जब माँ दिखाती आँगन में चहकते गोर्रेय्या को
जब मै दूध पीता था और गोर्रेया को देखता था
उन्हें दीदी कहता था और माँ से रूठकर उन्हें
भी पिलाने को दूध कहता था
रोज सुबह आती थी गोर्रेय्या
डाल पर बैठ कर गाती थी गोर्रेय्या
क्याबच्चे हमारे जानेगे क्या थी गोर्रेय्या
किताबों और गूगल में देखेंगे ये थी गोर्रेय्या

आज भी याद है वो बचपन के बसंत
जब गोर्रेय्या अपनी चोंच में दबाकर तीनका लाती थी
अपनी  प्रेयसी को रिझाती थी
हम तो लाते है गुलाब
पर ये नीड़ ही इनका था गुलाब
घर बनाने को ना जाने कहाँ से
तिनका लाती थी झूम झूम कर नाचती
गाती थी

उषा से गोधुली तक यही चलता था
कलरव गुंजन और निर्माण
पर हाय! अब नहीं चहकती गोर्रेय्या आँगन में
अब नहीं दिखती गोर्रेय्या आसमान में

धन्यवाद्
और अंत में मेरे दो प्रेमात्मा को प्रणाम

कमेंट्स की आशा में
आपलोगों का
सुप्रिय sparrow

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